मेरा न्यूमरोलॉजी कंटेंट पसंद आया?
आपके समर्थन से, मैं और भी रिसर्च कर सकता हूँ!
मुझे एक कॉफ़ी खरीदो! ☕
×

Uma and the Moon: The Hidden Reality Behind Somvar

सोम, उमा और शिव: सोमवार के पीछे छिपा गूढ़ आध्यात्मिक रहस्य

समय-समय पर प्रत्येक विचारक ने अपने गहन अध्ययन में जो पाया, वही उसने लोगों के सामने रखा। मैं भी उसी तरह अपने विचार रखता हूँ। जब मुझे किसी बात में गहन रहस्य नज़र आता है, तो मैं उसे वास्तविकता की दृष्टि से देख कर अपना विचार प्रकट करता हूँ।

यह लेख केवल परंपरा या पूजा का वर्णन नहीं है, बल्कि मेरे ध्यान और अनुभव से निकला वह सत्य है जो चेतना, उमा और शिव तत्व को जोड़ता है। सोमवार का संबंध केवल एक वार से नहीं, बल्कि उस चंद्र-चेतना से है, जो हमारे मन में घटती-बढ़ती रहती है।

Uma and the Moon: The Hidden Reality Behind Somvar

सोमवार का वास्तविक अधिपति

लोग मानते हैं कि “सोमवार शिव का दिन है।” परंतु जब मैं वैदिक दृष्टि से इसे देखता हूँ, तो इसके भीतर छिपा गूढ़ अर्थ प्रकट होता है।

  • कर्मकांड में जब नवग्रह की वेदी रची जाती है, तो चन्द्र के स्थान पर माँ उमा की पूजा की जाती है।
  • भगवान शिव की पूजा सूर्य के स्थान पर होती है।
  • चन्द्र स्त्री-कारक ग्रह है, जबकि सूर्य पुरुष-कारक
  • सोमवार को जो दूध भगवान शिव पर चढ़ाया जाता है, वह वास्तव में उमा के स्थान पर चन्द्र को अर्पित होता है।
  • यह उपाय है उन लोगों के लिए जो ध्यान में असमर्थ हैं, जबकि ध्यान करने वाला व्यक्ति अपने मन की एकाग्रता से चन्द्र को मजबूत करता है और उमा को प्रसन्न करता है।

मन और चन्द्र का रहस्य

चन्द्र केवल आकाश का ग्रह नहीं, यह हमारे मन का प्रतीक है। जैसे चन्द्र घटता-बढ़ता है, वैसे ही मन भी प्रसन्नता और अवसाद के बीच डोलता रहता है।

  • जब मन अस्थिर होता है, तो चन्द्र का प्रभाव कमजोर पड़ता है।
  • जब मन शांत और प्रेममय होता है, तो चन्द्र अपनी पूर्ण कलाओं में प्रकट होता है।
  • ध्यान का अभ्यास इसी घटने-बढ़ने वाले मन को स्थिर करने का माध्यम है।
  • जब ध्यान में मन शीतल होता है, तो व्यक्ति के भीतर सोम (रस, अमृत) प्रवाहित होता है। यही सोम आगे चलकर उमा की कृपा का पात्र बनता है।

वैदिक सूत्र:

  • “चन्द्रमाः मनसो जातः।” (ऋग्वेद 10.90.13) ~ चन्द्र मन से उत्पन्न है, इसलिए मन का स्वामी है।

इसलिए सोमवार को मन की शांति के लिए ध्यान करना, चन्द्र की उपासना करना, और उमा की करुणा को आमंत्रित करना ~ यह तीनों एक ही साधना के अंग हैं।

उमा का आंतरिक स्वरूप

“उमा” केवल नाम नहीं, यह चेतना की एक अवस्था है।

  • उम् + मा = “अरे, मत करो पुत्रि!” ~ यह वह क्षण है जब शक्ति को उसके स्वाभाविक प्रवाह से रोका गया, ताकि वह भीतर की ओर लौटे।
  • यह वही बिंदु है जहाँ भौतिक संसार की गतिकी रुकती है और आत्मा शिव की दिशा में मुड़ती है।
  • उमा वही शक्ति है जो मन को प्रेम, करुणा और शांति में लिप्त करती है।
  • जब मन उमा से जुड़ता है, तो वह धीरे-धीरे विकारों से मुक्त होकर शिव में समाहित होने लगता है।

श्लोक:

  • “उमां हैमवतीं त्र्यम्बकं पश्यन्ति कवयो।” (केन उपनिषद् 3.12) ~ ज्ञानीजन उस हैमवती उमा को देखते हैं, जो त्र्यम्बक शिव के ज्ञान को प्रकट करती है।

उमा का ध्यान करते हुए मुझे अक्सर ऐसा प्रतीत होता है कि मन का कोलाहल एक मंद तरंग में परिवर्तित हो जाता है, और चेतना में एक शीतल प्रकाश भर जाता है। यही अवस्था “सोमनाथ” की दिशा में पहला कदम है।

शिव का मौन स्वरूप

शिव कोई देवता मात्र नहीं ~ वे मौन हैं, शून्य हैं, अस्तित्व की अंतिम परिणति हैं।

  • सूर्य जिस प्रकार संपूर्ण प्रकाश का स्रोत है, वैसे ही शिव चेतना के मौन का केंद्र हैं।
  • जब उमा मन को स्थिर करती है, तब वही मन उस मौन में प्रवेश करता है जिसे “शिवत्व” कहते हैं।
  • यह मौन मृत्यु नहीं, बल्कि पूर्णता की अनुभूति है।

श्लोक:

  • “न तत्र सूर्यो भाति न चन्द्रतारकं।” (मुण्डकोपनिषद् 2.2.10) ~ जहाँ वह परम प्रकाश है, वहाँ सूर्य या चन्द्र का अस्तित्व नहीं रह जाता।

मेरे ध्यान में यह अवस्था उस क्षण आती है जब भीतर कोई विचार नहीं, केवल उपस्थिति है ~ वही सच्चा शिव है।

सोम, उमा और शिव ~ त्रिविध संबंध

  • सोम (चन्द्र) मन का प्रतीक है, जो निरंतर परिवर्तनशील है।
  • उमा उस मन की दिशा है, जो प्रेम, करुणा और शीतलता में परिवर्तित होती है।
  • शिव उस दिशा का अंतिम लक्ष्य है ~ अचल, निष्कंप, सर्वात्म।

जब मन उमा की कृपा से शांत होता है, तो वह शिव की ओर मुड़ता है। इसीलिए उमा से जुड़ना ही शिव तत्व प्राप्त करने का मार्ग है।

सोमनाथ की कथा और प्रतीकात्मक अर्थ

कथा कहती है कि चन्द्र को क्षय रोग लगा। उन्होंने शिव की तपस्या की, और उमा के करुण भाव से शिव ने सोम की रक्षा की। इसीलिए शिव को “सोमनाथ” कहा गया ~ अर्थात वह जो सोम की रक्षा करता है।

लेकिन इस कथा का अर्थ केवल इतना नहीं है। यह मन की यात्रा का प्रतीक है।

  • जब मन (सोम) विकारों से पीड़ित होता है, तो वह शिव की शरण लेता है।
  • उमा, यानी शक्ति, उस मन को करुणा और प्रेम से ढँक देती है।
  • तब शिव का मौन मन को स्थिर करता है, और सोम पुनः अपनी पूर्ण कलाओं में लौट आता है।

इस प्रकार “सोमनाथ” वह स्थिति है जहाँ मन शिव के अधीन होता है।
यह कोई बाहरी मंदिर नहीं ~ यह आत्मा का अंतर्मंदिर है।

ध्यान का मार्ग - सोम से शिव तक

जब ध्यान में मैं अपने भीतर झाँकता हूँ, तो सोम का प्रकाश बहुत सूक्ष्म दिखाई देता है। यह वही चेतना है जो कभी शीतल है, कभी लहराती है।

  • धीरे-धीरे जब मैं अपने भीतर के श्वास पर ध्यान केंद्रित करता हूँ, तो उमा का स्पर्श अनुभव करता हूँ।
  • वह स्पर्श करुणा से भरा है, पर उसमें एक अनुशासन भी है ~ जो मन को भटकने नहीं देता।
  • और जब यह करुणा स्थिर होती है, तो शिव का मौन जागता है। वही मौन “सोमनाथ” का द्वार है।

वैदिक दृष्टि से सोम का अमृतत्व

  • सोम को वैदिक ग्रंथों में अमृत कहा गया है।
  • जब मन संयमित और शांत होता है, तो यह सोम अमृत रूप में भीतर प्रवाहित होता है।
  • यही अमृत साधक को दीर्घ आयु, निर्मलता और प्रज्ञा प्रदान करता है।

श्लोक:

  • “सोमं मन्ये पपिवांसं देवता।” (ऋग्वेद 9.96.5) ~ जो सोम का रस पीता है, वह देवता बन जाता है।

ध्यान के गहन क्षणों में यह सोम केवल प्रतीक नहीं रहता ~ यह एक वास्तविक अनुभूति बन जाता है।

अंतर्मंदिर

मेरे अनुभव में सोमवार केवल पूजा का दिन नहीं है। यह वह क्षण है जब ~

  • मन उमा की करुणा में पिघलता है।
  • चेतना शिव की निस्तब्धता में स्थिर होती है।
  • और सोम का प्रकाश भीतर से झिलमिलाता है।

“सोमनाथ” कोई बाहरी मंदिर नहीं, बल्कि वह अंतर्मंदिर है जहाँ उमा और शिव एकाकार होते हैं, और मन पूर्णतः मुक्त हो जाता है।

अंतिम विचार:

  • सोम मन है।
  • उमा उसकी दिशा है।
  • शिव उसकी परिणति है।

इन तीनों का मिलन ही सच्चा सोमवार है ~ वह दिन जब भीतर का मन, चन्द्र की शीतलता और शिव का मौन एक हो जाते हैं।

ॐ नमः सोमेश्वराय।

Surinder Muni

My journey began with a deep curiosity about life, existence, and the secrets beyond the visible world, which naturally led me into the realms of astrology, spirituality, and cosmic mysteries.

Thanks for commenting we are see it early.

Post a Comment (0)
Previous Post Next Post